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20 Feb 2024 · 1 min read

प्रकृति को जो समझे अपना

तरस रहा जो बूँद–बूँद को,
जल का मोल वही जाने,

सूखी रोटी खा रहा चाओ से,
अन्न का मूल्य वही जाने,

साँसो के लिए जो तड़प रहा,
प्राणों की अहमियत वही जाने,

घूम रहा बिन छत के जग में,
धरा को अनमोल वही माने,

प्रकृति को जो समझे अपना,
वातावरण बेहतर दिखे वहांँ,

जागरूकता है जितनी ज्यादा जिधर,
सुन्दर पर्यावरण बनते है वहाँ।

@ बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।

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