प्रकृति का कहर
प्रकृति का कहर
मूसलाधार बरस रहा पानी,
झम झमा झम बरसा पानी I
बादल बरसे, गरजे बादल,
मच रही है,चहू और दलदल l
आया पानी, भीगी धरती,
बढ़ा दी है,मुश्किल सबकी।
चारों ओर है , अब पानी ही पानी,
जलमग्न हुआ शहर, शहरी हुये सब जलीय प्राणी।
सावन बरसे,भादो बरसे,
है आहवाहन
जनमानस से।
ना खेल खेलो ,पर्यावरण से,
ना काटो पेड़ ,लगाओ पौधे,
करो शुरुआत आज अपने घर से।
कहे पा”रस” तभी बचोंगे तुम प्रकृति के कहर से।
अंत में बस यही
पर्यावरण का संतुलन बनाए रखना, आने वाली पीढ़ी को जगाए रखना।