प्यासा पंछी
शीर्षक- प्यासा पंछी
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प्यासा पंछी को देख,
प्रकृति उदास बैठे हैं।
वीरान सा दिखता उपवन,
सुखी लकड़ी खड़ी हैं।
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विहंग की ये कहानी,
उड़ान जी भरते हैं।
थक कर वापस उसनें,
घोंसला में लौट आते हैं।
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पंछी करती विलाप तो,
हरियाली नष्ट हो जाती है।
जेठ की तपती धूप तो,
जीव की कंठ सुख जाती हैं।
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देखो उपवनों में चिड़िया,
कैसे चहकने लगी है ।
चूँ चूँ करती नीर ढूंढ़ती,
अब प्यास होने लगी हैं।
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रचनाकार-डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
पीपरभवना,बलौदाबाजार (छ.ग.)
मो. 8120587822
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