प्यासा नैन
रात के अंधेरे में ,
चांद को न ढ़ुंढ़ो,
ढ़ुंढ़ो उस नयना को,
जो हर पल खोचती है उस चांद को
चांद का क्या अपनी रोशनी से जगमगा जाएगा,
पर उन नैनौं का ,
जो अब भी बिलख रही है
पुछना हि है तो पुछो
उन तरसती निगाहों से
दर्द ए दिल होता है क्या??
उस चांद से क्यो,
जिसने कभी महोबब्त कि नहीं
उस निष्ठुर चांद के,
ना जाने कितने दिवाने है,
पर इस नयन का क्या?
यह बेचारी तो अकेली है,
प्यासे हैं यह नैन उस नज़ारे के,
पर मंजुर नहीं बात
उस चांद सितारे को