प्यार में वो दिलजले भी खूब थे।
हज़ल-
2122……..2122…….212
प्यार में वो दिलजले भी खूब थे।
उम्र थी तब मनचले भी खूब थे।
बोलने मिलने में घबराते थे पर,
चुपके चुपके देखते ही खूब थे।
मार खाकर भी न शर्मिंदा हुए,
उन दिनों में हौसले भी खूब थे।
मां न बेटी से कोई शिकवा गिला,
ऐसे भी चक्कर चले भी खूब थे।
प्यार सबका पा के गुलदस्ता बना,
फूल जूड़े में लगे भी खूब थे।
बात होली की थी वो रंगी शमां,
दोनों के चहरे रॅंगे भी खूब थे।
डर न भादौ की ॲंधेरी रात का,
चोरी से छत पर मिले भी खूब थे।
साथ जीने मरने की कसमें महज,
ठगने के वो चोचले भी खूब थे।
साथ प्रेमी का खुदाया मिल गया,
प्रेम में वो वलवले भी खूब थे।
…….✍️ सत्य कुमार ‘प्रेमी’