प्यार भरा इतवार
भाता हमको आज भी उतना ही इतवार
जितना बचपन में हमें आता इस पर प्यार।
सूर्योदय के पूर्व ही खोलें प्रतिदिन आँख
यही एक दिन है मिला, भैया चादर तान।
बच्चों के पीछे नहीं, किच किच करनी आज
मस्ती से वे सो रहे, मिला उन्हें अवकाश।
अधिक देर तक सोएँगे, शायद घंटा एक
साथ मिला परिवार का, यह विचार है नेक।
सच है कुछ फरमाइशें करनी होंगीं पूर्ण
मुख पर तृप्ति देख कर जीवन हो सम्पूर्ण।
बच्चों के संग घूमने भी जाएंगे आज
पूरे भी कर पायेंगे, कब के छूटे काज।
बचपन के इतवार का था अपना इक रंग
देख हमारी मस्तियाँ, रह जाते सब दंग।
अपने बचपन का लिया , जमकर के आनंद
मम्मी पापा को किया, जी भर कर के तंग।
मम्मी से फरमाइशें, पापा की मनुहार
भोली सूरत देख कर, जाते थे वे हार।
बदला है अब दृश्य भी, बदले है किरदार
पूरी हम क्यों न करें, फरमाइशें अपार।
सच है जब परिवार, का मिलता रहता प्यार
दिन कोई खलता नही, मंगल या इतवार।
डॉ मंजु सिंह गुप्ता