प्यार के दाम
**प्यार के दाम है (ग़ज़ल)**
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बहुत आम बदला बड़ा नाम है,
नहीं खास होता कहीं काम है।
लगे छंटने बादल घने घोर थे,
खिड़ी धूप ढलने लगी शाम है।
चढ़े रंग नीले लाल बाग पर,
खिले फूल ख़ुश्बू यहाँ आम है।
भरी खूब महफ़िल चार चाँद है,
लगे यार पीने भरे जाम है।
ज़रा चाल को तुम विराम दो,
मटकती हुई चाल बदनाम है।
हुआ मंहगा प्रेम रोग रोज ही,
पिया मांगता प्यार के दाम है।
खड़े लोग सीरत बना मुंह सा,
बजी बांसुरी पास में श्याम है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)