प्यार की शम्आं जलाकर चल दिया
प्यार की शम्आं जलाकर चल दिया।
आज फिर वो मुस्कुराकर चल दिया।।
है भला अब क्या छुपा तुझसे मेरा।
रुख से हर पर्दा उठाकर चल दिया।।
भूल कर बैठे थे जो औकात को।
आइना पल में दिखाकर चल दिया।।
वक्त की जंजीर ने जकड़ा हमें।
गर्त यादों की हटाकर चल दिया।।
तप्त रेगिस्तान में ‘माही’ पड़ी।
प्रीत की गंगा बहाकर चल दिया।।
© डॉ० प्रतिभा ‘माही’ पंचकूला