प्यार की रायशुमारी
वजूद-ए-हुस्न को जानने की, पहले मैंने तैयारी की,
उसको अपने पास लाने की, फिर कोशिशें जारी की ।
मंजिल बहुत ही दूर लगी मुझे, मेरे अरमानों की, मगर,
उसके वास्ते सब भूल जाने में, ना दिल ने लाचारी की ।
अलग नशा घोलती फ़िजा में, उसकी महकी, मदभरी साँसें,
हमकदम बनके की ठानी मैंने, चाहत से ना गद्दारी की ।
खामोशियों के, तन्हाइयों के दिन भी, रुखसत तबसे हो गए,
घड़ी-घड़ी दरों-दीवारों से जबसे मैंने, उसकी राय-शुमारी की ।
कुछ लोग नुक्स निकालने लगे, तेरी दुनिया के रंगो में “खोखर”,
सब जगाह तेरे खुशनुमा चेहरे ने, प्यार की जो इश्तहारी की ।
(अरमान = इच्छा, कामना)
(हाव भाव = आकर्षक और कोमल चेष्टाएं)
(राय-शुमारी = चर्चा)
(फिज़ा = बहार, रौनक, खुशनुमा माहौल, शोभा)
(इश्तहारी = प्रचार, विज्ञप्ति: जिसका विज्ञापन निकला हो)
©✍?अनिल कुमार (खोखर)
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