प्यार की पुकार
“प्यार की पुकार”
जंग में जीती गई हर ज़मीं से प्यारी
प्यार में हारी गई हर हार होती है
किसी की आंख से निकले हुए आंसू में
दर्द हो ना हो आग बेशुमार होती है
जवानों की शहादत जंग में हो या अमन में
हर बार नश्तर बन कर जिगर के पार होती है
खून अपना गिरे या गैरों का खून, नेकनीयत का होता है
हैवानियत की आड़ में बस, इंसानियत शर्मसार होती है
लड़ाई अपनों में हो या गैरों से वजह वाजिब हो या गैर वाजिब
लड़ाई तो होती ही है बर्बादी का सबब अमन पसंदों को ये नागवार होती है
असला असल में उसूलन है गलत इंसान आखिर, क्यूं डरे इंसानों से
अमन, चैन क्यों कहीं खो से गए हैं जिन के दम से दुनिया बहार होती है
प्यार की ताकत का जब कभी भी ताकत के प्यार पर असर होता है
धरे रह जाते हैं नफरतों के मंसूबे हर तरफ प्यार की बौछार होती है
अब ना बोए जाएं, नफरतों के बीज कहीं अब ये दहशतों के बाज़ार बंद किए जाएं
आइए रखें, एक नई दुनिया की नींव, हम जहां हरेक घर से प्यार की पुकार होती है
~ नितिन कुलकर्णी “छीण”