प्यार और लडाई
प्यार – तकरार
“बेटा बनारस वाली गाडी कौन से प्लेटफार्म पर आऐगी ”
रमा ने अपने सिर पर रखी गठरी नीचे रखते हुऐ गेट पर खडे टीटी से पूछा ।
टीटी ने कहा :
” पाँच नम्बर पर खडी है और दस मिनट बाद जाने वाली है ।” टीटी गौर से देखा यह कोई सत्तर साल की महिला है और पाँच नम्बर तक जाना मुश्किल होगा ।
लेकिन रमा अब टिकट की लाईन में लग गयी।
लोगो ने कहा :
” माँ जी आप रेल पकड लीजिए नही तो छूट जाऐगी जनरल मे वैसे भी कोई टिकट चेक नही करता ।”
” नहीं बेटा आज तक कोई गलत काम नही फिर बुढापा क्यो बिगाडू। ”
रमा की बातों से सभी प्रभावित थे तभी सबसे आगे खडे आदमी ने एक बनारस का भी टिकट लिया और बोला :
” माँ जी यह रहा आपका टिकट अब जल्दी से जाईए नही तो रेल छूट जाऐगी ।”
रमा ने उस आदमी को पैसे और आशीर्वाद दिया फिर गठरी सिर पर रख कर तेज कदमों से आगे बढ़ गयी ।
इस चक्कर में सात मिनट गुजर गये ।
अब सबकी निगाहें रमा पर थी और चिन्तित थे ।
इस उम्र में भी लगभग भागते हुऐ रमा एक नम्बर से पुल पर चढ़ कर पाँच नम्बर पर पहुंच गयी ।
रेल ने सीटी दे दी थी और रमा अब जनरल डिब्बे के करीब पहुंच कर गठरी को डिब्बे के अंदर डाल कर चढने लगी ।
रेल धीरे धीरे चल दी थी तभी डिब्बे से एक कंपकपाता हाथ आगे बढा और रमा का हाथ पकड कर अंदर करते हुऐ कहा :
” बडी जिद्दी है री तू हमेशा लडती रहेगी और अकेले जाने भी नही देती सोचा था बनारस में कुछ दिन भोले की पूजा पाठ में दिन बिताऊगा ।”
रमा ने कहा :
” वाह रे भोलेभंडारी इस पार्वती के बिना तेरी कोई पूजा आज तक हुई है क्या ? अरे ऐसे ही कभी प्यार कभी तक़रार में इतनी जिन्दगी कैसे कट गयी पता नही चला अब बाकी जिन्दगी को क्यो बोझ बनाऊ चल भोले पार्वती की शरण में यह बुढिया भी साथ है । ”
रेल ने अब गति पकड ली थी और दोनो एक दूसरे को प्यार भरी निगाह से देख रहे थे ।
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल