प्यार :आज और कल
प्यार में’ऐसा’ होता है, मैं जानता नहीं था
प्यार में ‘ऐसा भी’होता है, मानता नहीं था
मीरा बाई ने गाया था- प्रीत ना करना कोई
पर प्रीत निभाई, मूर्ति में समा गई
मैंने प्रीत निभाई, मैं कहाँ समाऊँ?
प्यार ना करें,
मेरे पास (कु)तर्क बहुत हैं
क्योंकि कल में और आज में
फर्क बहुत है
तब सोचना था , अब सोचता हूँ
क्यों, क्या, कैसे – सब सोचता हूँ
मुझे याद है, जब हम मिले थे
पहली बार तुम हंसी थी
और मैं आखिरी बार !
जब मिले थे- तब अनजान थे
जब अनजान थे – तभी भले थे (अब लगता है )
तुमसे मिलूंगा पहले सोचा नहीं था
अब सोचता हूँ – मिला ही क्यों ?
तुझसे मिलना कल परसों की ही बात लगती थी.
अब…बरसों… की बात लगती है
जब छत से देखा करती थी
तुम बिल्कुल रेखा लगती थी
मैं तुझको राधा कहता था
लगता है ज्यादा कहता था
प्रिया, प्यारी, प्रियतम थी
अब बस तम (अंधेरा) बचा है
परिवर्तन प्रकृति का नियम है
तुम भी चंद्रमुखी फिर सूर्यमुखी और
अब ज्वालामुखी हो गई
कभी तुझमे चंदा दिखता था
अब मेरे सिर में….
क्या सोचा था, क्या हो गया
जब से अपना ब्याह हो गया
तुमने कहा था सारे ग़म अपना लूँगी
सच में, ग़म ही तो अब अपना है
सोचा था तुम्हें बेगम बनाकर
हम भी बे-ग़म हो जाएंगे
अब तो बेगम-
ये ही ग़म, सबसे बड़ा लगता है
कभी कभी लगता है किस्मत
क्रिकेट की तरह खेल रही थी
कभी ट्वेंटी ट्वेंटी, कभी टेस्ट
कभी वन डे और अब एवरी डे
बबलगम सुना था,
अब ग़म ग़म हो गई है
तू खास थी , पर पास नहीं
अब तू पास तो है पर….
लकीरें फरेबी लगती है
जिंदगी जलेबी लगती है
तब ‘तुझे ही’ चाहता था
अब ‘तुझे भी’ चाहता हूँ
तब ‘बात हो जाए’सोचता था,
अब- बात करूँ..? सोचता हूँ
तब तुझे रात भर सोचता था
अब बात भर सोचता हूँ
तू पहले दिल में रहती थी
अब तू हर बिल में रहती है
कभी बाटा, कभी टाटा
कभी छुरी, कभी कांटा (काटा)
वो गलियाँ गाली लगती है
सभी सुन्दर साली लगती हैं
तेरी आँख शराबी लगती थी, अब मैं…
पहले दर्दे दिल की दवा चाहता था
अब- बीपी(बीबी) और शुगर की
पहले दिल जलता था, अब पेट्रोल
लोगों का मूड बदलता है, तुम्हारा मोड
वो भी साइलेंट से वायलेंट
तुम्हें हास्य रस की कविता समझा
तुम वीर रस की निकली
खुशियों के केवल बहाने रह गए
बस दर्द भरे तराने रह गए