प्यारे घन धरती पर आओ
प्यारे घन धरती पर आओ,
छन छन बूँद पड़े पृथ्वी पर
जन जन में खुशहाली लाओ।
मुदित विहंगा चञ्चु फाडकर।
गिरती बूँदो से प्यास बुझाओ।
मोती सदृश पत्तो से छनकर
धरती पर गिरती दिखती है ।
गरज रहे हो खुशी मिलन की
चपला से स्मित मुख लाओ।।
प्यारे घन धरती पर आओ।
तृषा तृप्ति दो पीउ पपीहा,
आओ नभ में घिर घिर जाओ।
प्यारे घन धरती पर आओ ।
पडी दरारे हृदय सदृश जो
जल से उनको स्नेह मिलाओ
दूरी बनी रही जो अबतक
पडी दरारे दूर भगाओ।
प्यारे घन धरती पर आओ ।।
चमक रूख में फिर आ जाए
मेढक जल पा करके गाएं।
एक बार फिर प्यास बुझाओ।
प्यारे घन धरती पर आओ ।
बड़े दिनो तक दूर रहे हो
धरती से क्यों रूठ गए हो।
खत लिखू या फोन करूँ मैं
अपना पता झट बतलाओ।
प्यारे घन धरती पर आओ ।।
बच्चे नभ को ताक रहे हैं ।
उत्सुकता से झाक रहे हैं
इन्द्र धनुष के रंग देखने
पावस आने तक जाग रहे हैं
कई रंग का मेल कराओ।
प्यारे घन धरती पर आओ ।।
क्रमशः——–
विन्ध्य प्रकाश मिश्र विप्र