प्यारी रजाई ( शीत ऋतु विशेष हास्य lकविता )
अरे ओ रजाई ,
जबसे तू हाथों में आई ।
तेरे आगोश में हमने सारी ,
दुनिया है भुलाई ।
इधर सर्दी का शबाब ,
उधर तेरा पुरसुकून साथ ,
वाह ! क्या लुत्फ है भाई !
ऐसे में गर कोई नींद से जगाए ,
उसे समझें हम कसाई ।
हां ! गर ऐसे में पिला दे बेड टी ,
उससे प्यारा जग में मीत नहीं कोई ।
मगर फिर भी तेरा संग न छूट पाए ,
बेड टी पीकर भी वापस आगोश ,
में बुलाए तू रजाई ।
अहा ,!! कितनी प्यारी नरम नरम
है तेरी गरमाई ।
तेरे पहलू में आकर ऐसा लगे ,
जैसे गोद में लेकर दुलार करे कोई माई ।
सारे संसार के सुख एक तरफ ,
एक तेरा साथ सारे सुखों पर भारी ।
तू धन्य है हे प्यारी रजाई !!