प्यारा बसन्त
प्यारा बसन्त
धरती पर जो ये पात पड़े हम सबके प्रेरक बहुत बड़े।
ये वर्षा धूप शीत सहकर भी वायु प्रदूषण सँग लड़े।।
हैं कृतज्ञता के तेज पुन्ज ये झड़कर नीचे आन पड़े।
उऋण हो सकें तरुवर से सो उपरिमृदा में गले सड़ेे।।
वृक्षों के पीले पतित पात ये भू पर बिछ कर भी सुहात।
तरुओं के नंग धड़ंग गात जन मन में भी सिहरन बढ़ात।।
सिहरन प्रेरित सब बन्त ठन्त तब महके सारा दिगदिगंत।
होता न कभी खुशियों का अंत जब आता रहताहै बसंत।।
नव कोपलें रंगीले फूल अरु सुमनों में छिपे नुकीले शूल।
योगी ऋषिमुनि अरु यती संत तनमन भूले सुमिरें बसंत।।
जब यूं आता प्यारा बसंत ! सबको ही भा जाता बसंत।
जब आता है बैरी बसंत ! सब भूल जाएं तब आदि अंत।।
सुभद्रा, तुलसी , कवि केशब ,पंत सदा लिखें मुद्दे ज्वलंत।
कुछ दिगदिगंत कुछ मनगढ़ंत जब आता है प्यारा बसंत।।
लेखन की खुशियां भी अनंत जब भूले हों सबआदि अंत।
सन्त हों अथवा हों असन्त चाहें कुलहीन हों या कुलवंत।।
आता जब बन ठन कर बसंत तो बन जाते हैं सब महंत।
आम बौरा गए खास बौरा भएभौंरे करें पान मकरंद का।।
फूल श्रवें मकरंद खुश होवैं महंत ये प्रभाव है बसंत का।
प्रभाव है बसंत का………………… प्रभाव है बसंत का।।