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19 Nov 2022 · 1 min read

प्यारा बचपन

वक़्त की उँगली पकड़े हुए जब
आधी ज़ीस्त गुज़र गई,
आधे साथी पीछे छूटें
और आधों की ख़बर नहीं।

यक-लख़्त किसी इक शाम को
मैं ठहरा और फिर खो गया,
यादों के सौ बादल छाए
मैं फिर से बच्चा हो गया।

बे-परवाह अपना बचपन था
बे-फ़िक्री उसकी निशानी,
हर रोज़ इक नया किस्सा था
हर दिन इक नई कहानी।

जाने किस मनहूस घड़ी में
नज़र लग गई दुश्मन की
हुए जवाँ और मौत हो गई
अपने प्यारे बचपन की।

-जॉनी अहमद ‘क़ैस’

1 Like · 153 Views
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