प्यारा बचपन चला गया..
बिजली,बादल,पानी वाला सुंदर सावन चला गया
यादों की सौगात थमाकर प्यारा बचपन चला गया
माटी के घर के आँगन में अपना एक बगीचा था
छोटे पौधे रोप-रोपकर लोटा भर-भर सीचा था
सच मानो के उस दिन हम भी जी भरकर हरषाए थे
जब पौधों ने डाली पर कुछ सुंदर फूल खिलाए थे
गौरैया से बातें करने वाले हम अलबेले थे
साथ मोहल्ले के बच्चों के खेल अनेकों खेले थे
पक्के होते घर की जद से दूर वो आँगन चला गया
यादों की सौगात थमाकर प्यारा बचपन चला गया
भरे जून की कड़ी दोपहर में उठते थे गिरते थे
कुत्ते के नन्हें बच्चों को गोद में लेकर फिरते थे
जेब में चार चवन्नी न थी फिर भी हम मुस्काते थे
तितली, जुगनू पकड़-पकड़ कर अपना रंग जमाते थे
लोटा, थाली बजा-बजाकर सारे झूमा करते थे
गाय, भैंस की पूँछ पकड़ गलियों में घूमा करते थे
ओढ़ शराफत की चादर को वो पागलपन चला गया
यादों की सौगात थमाकर प्यारा बचपन चला गया
घूम-घूमकर मेले में गुब्बारे फोड़े जाते थे
माटी वाले देख खिलौने दूर खड़े ललचाते थे
सूखे पड़ते मौसम में भी यार तरावट देखी है
पापा के कंधे पर चढ़कर खूब सजावट देखी हैं
झूला, जादू, सर्कस की गाथाएँ बाँचा करते थे
मेले में डीजे की धुन पर झूम के नाचा करते थे
मस्ती करने वाला दिल से दीवानापन चला गया
यादों की सौगात थमाकर प्यारा बचपन चला गया
कंचा, गिट्टी, रेंड़ी-वेंड़ी एक-एक कर जोड़ी थी
टायर खूब चलाया था हमने भी गिट्टी फोड़ी थी
चोर-पुलिस के खेल में हम इक दूजे को दौड़ाते थे
छुपा-छुपौली में खटिया के भी नीचे घुस जाते थे
पेड़ पे चढ़कर लफिया खेली सबको खूब सताया था
मार के डण्डे से गिल्ली को दूर बहुत पहुँचाया था
माँझें से कटकर पतंग का अब तो तन-मन चला गया
यादों की सौगात थमाकर प्यारा बचपन चला गया