“पोरस”
“पोरस”
————————-
जानता हूँ ,
सिकंदर हो तुम;
तुम अपने जहाँ के।
पर हूँ ,
पोरस मैं भी;
जीवन में अपने;
छोड़ूंगा नहीं,
युद्ध का मैदान,
अंत तक,
जब तक,
खड़ा न हो जाऊँ ;
सामने तुम्हारे,
बराबर बराबर
—————————————-
राजेश”ललित”शर्मा
“पोरस”
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जानता हूँ ,
सिकंदर हो तुम;
तुम अपने जहाँ के।
पर हूँ ,
पोरस मैं भी;
जीवन में अपने;
छोड़ूंगा नहीं,
युद्ध का मैदान,
अंत तक,
जब तक,
खड़ा न हो जाऊँ ;
सामने तुम्हारे,
बराबर बराबर
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राजेश”ललित”शर्मा