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26 May 2023 · 1 min read

पैसों के छाँव तले रोता है न्याय यहां (नवगीत)

नवगीत 24

पैसों के
छाँव तले
रोता है न्याय यहाँ ।

खुशिओं की
वाट लगी
दर्द भाव खाता है
सच के
दरवाजे पे
झूठ मुस्कुराता है
कर्मो की
फसलों को
वक्त काट देता पर
किस्मत के
ओलों का
भी तो अध्याय यहाँ

मौसम
चुनाव लड़े
धुंध भरे पर्चा तो
दिल्ली के
दंगों की
रोज करें चर्चा वो
लील रहा
जनता को
सीवर का पानी
मन के
प्रदूषण का
फैला पर्याय यहाँ ।

रीति
रिवाजों को
फैशन ने काट दिया
बाबा के
रिश्तों को
पोतों ने बाँट दिया
आभाषी
दुनिया ने
छीन लिया वक़्त को
मॉर्निंग में
टाटा तो
नाईट में बाय यहाँ ।

—रकमिश सुल्तानपुरी

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