पैसा
पैसे मे जीवन दिखे, यह कैसा संसार।
जीवन में पैसा दिखे, तब हो बेड़ा पार ।।
पैसे खातिर बेच दी, देश धर्म की लाज।
मानव की इस सोच से, विकृत हुवा समाज।।
पैसे मे निष्ठा बसी, पैसा गुरु पितु मातु।
भाव, दया सब खो चुका, मानव बन गया धातु।।
पैसा रखकर केंद्र में, घर घर हो परिवाद।
परिवारों के बीच में, टूटे सब संवाद।।
रोक सको तो रोक लो, पैसे का ये खेल।
जीवन ही तो तत्व है, पैसा इसकी मैल।।
#जीवन को जीवन में उतरने दे, पैसे को इसका पर न कतर ने दे#