पैसा
पैसे ने इंसान को,
कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया,
कभी जिंदगी से दूर किया,
कभी पास ला दिया,
फुटपाथ पर गरीब पैसे के लिए रोता है,
महल में अमीर भी पैसे के लिए ही जागता-सोता है,
बिन पैसे दुनिया में कोई इज्जत नहीं पाता है,
पैसा है जेब में तो हर रिश्ता, हर नाता है,
बिन पैसे उदास दिन, सूनी रातें हैं,
पैसा हो तो दुनिया भर की करामाते हैं,
पैसे की अजब माया है,
जिसे कोई समझ न पाया है,
कहते हैं –
इंसान ने पैसे को बनाया था,
अपनी सुख-सुविधा के लिए,
इसे अस्तित्व में लाया था,
आज पैसा इंसान को बना रहा है,
अपने इशारे पर दुनिया चलवा रहा है
ऐसे में दिल यही दोहरा रहा है –
कंचन माया राखिए, बिन माया जग सूना।
इसकी खातिर लगा रहा, भाई-भाई को चूना॥
रचनाकार :- कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत)।
सर्वाधिकार, सुरक्षित (रचनाकार)।
दिनांक :- ०९.०१.२०१६.