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2 Jan 2023 · 1 min read

*दो कुंडलियाँ*

दो कुंडलियाँ
_______________________________
पैसा
_______________________________
पैसा जीवन में प्रमुख , पैसा जीवन-सार
अंटी में पैसा नहीं , तो जीवन बेकार
तो जीवन बेकार , जगत पैसे से चलता
निर्धन- जन निरुपाय ,हाथ रहता है मलता
कहते रवि कविराय ,न समझो ऐसा – वैसा
पैसा है भगवान , लोक में पुजता पैसा
_______________________________
पैसे
_______________________________
वैसे तो होता महज ,यह कागज का नोट
पर जब है होता नहीं ,पड़ती गहरी चोट
पड़ती गहरी चोट ,सर्द मौसम छा जाता
जीवन बारहमास ,सिर्फ पतझड़ कहलाता
कहते रवि कविराय ,जोड़ कर रखिए पैसे
बड़े काम की चीज , न समझें ऐसे – वैसे
————————————————–
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

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