पैमाना !
पैमाना कितना !
मुझ इंसान के गमो का ,
कितना होगा पैमाना?
जिंदगी तो है बस चंद सांसो की ,
मगर दर्द उनमें है सबसे जाएदा.
क्या पहले कम थे ,
या अब ज्यदा है .
टीस जो उठा करती है
वेदना के साथ .
शायद पहले इतनी नहीं थी .
अब उठने लगी है धीरे -धीरे.
घुटन भी पहले से बढने लगी है.
जो पहले कम थी . या कभी महसूस नहीं हुई .
क्योंकि होती थी जब पहले कभी घुटन ,
तो घर से बाहर चले जाते थे .
ठंडी हवा में साँस लेने .
और नया जोश कहीं से भर लाया करते थे.
मगर अब कहीं नहीं जा सकते.
कदम जो बांध दिए गए हैं हमारे ,
तभी ,हां तभी घुटन का एहसास जाएदा होने लगा है.
उड़ना चाहते है उड़ नहीं सकते .
मन थका हुआ है और आशाओं के पंख घायल हैं.
मन पहले ज्यदा उड़ता था पंख लगा कर ,
क्योंकि उड़ सकता था
अब कैसे ! न मुमकिन है .
मन में अब उड़ने की लालसा
ख़त्म सी हो गयी है.
अब तो बस मेरे बेशुमार अश्क है और एक नोट बुक .
जिसमें लिखते हैं अपने दर्द की कहानी .
आंसुओं से ही .
मगर यह दास्ताँ चलेगी कब तक ?
हमारे होंठो पर तबस्सुम का पैमाना भी .
कम है .बहुत कम है इतना की
महसूस होता है की हमें मुस्कुराये जैसे सदियाँ गुज़र गयीं.
हमें तो यह भी नहीं मालूम की
की हमारी मंजिल कहाँ है ?
मिलेगी भी या नहीं
खवाब तो बहुत देखती है आँखें .
मगर यह आँखें अपने ख्वाबों की ताबीर नहीं देख सकती
क्योंकि मंजिल और ख्वाबों के बीच
दिवार खड़ी है .
हमारी कम-नसीबी जो खडी है हमारे दरम्यान.
हमारी जिंदगी में जो थी तन्हाई .
क्यों लगती थी पहले इतनी बोझिल !
अब उसकी बड़ी याद आती है .
उसकी कमी बड़ी सालती है.
अब ! जब एक तूफान सा छा जाता है ज़हन में .
जो दिल के साथ-साथ पुरे वजूद को हिला देता है.
ऐसे में खुद को सँभालने के लिए
तन्हाई की तो बहुत ज्यदा ज़रूरत पड़ती है.
इस बाज़ार-ऐ-दुनिया में .
जहाँ अनचाहे रिश्तों का ,
कहकहों का ,
नुक्ताचिनियों का.
आरोप-प्रत्यारोप का शोर सा है .
बहुत ज़ायेदा कर्कशता और मीठी धुन है बहुत कम.
हम है यहाँ बहुत घबराये हुए से ,
और कुछ पगलाए हुए से.
क्या इस बाज़ार की कोई हद है?
चंद सांसे और इतना ज़ायेदा दर्द का अफसाना!
कितना है यह पैमाना!
और कितनी है बे-इंसाफी !
नहीं कम हो सकता अगर यह पैमाना .
तो बस एक तन्हाई की मात्र बड़ा दो .
हमें हमारी तन्हाई वापिस कर दो .
हम इसी पैमाने से संतोष कर लेंगे.
अब हम देखेंगे ! तुम्हारे पास है
जिगर का पैमाना कितना!