पेश वो अदब से आते नही
पेश अदब से वो अब आते नही
दुखड़ा अपना अब सुनाते नही
दोस्ती फरिश्तों से कर ली है
अपना अब वो हमें बताते नही
मुस्करा कर वो दूर जाते रहे
हिज़्र में अब मोती आते नही
किनारों में आशियाना बना लिया
मँझधार में अब साथ निभाते नही
नफरत कर ले चाहे वो अब बेइंतहा
याद करने के बहाने उनको आते नही
चाँद की छांव में बैठना छोड़ दिया
सितारों से अब वो बतियाते नहीं
हवा की मौजो में कश्ती बहने दो
राह दिखाने अब वो आते नही
बज़्म सजाए बैठे है उनकी यादों में
चार चाँद लगाने अब वो आते नही
दर्द में उनके तड़प रहे है “भूपेंद्र”
अब वो मरहम लगाने आते नही
भूपेंद्र रावत
10।08।2017