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13 Jun 2023 · 1 min read

पेशे से मज़हब का ठेकेदार लगता है

पेशे से मज़हब का ठेकेदार लगता है
वो आदमी मुझे दिमागी बीमार लगता है

मैं मलूल रहूँ तो ये भी मुस्कुराता नहीं
आईना मुझे सच्चा ग़म-गुसार लगता

शब भर इसे भी नींद नहीं आती
चाँद भी मिरी तरह बे-क़रार लगता है

हर इक से मैंने की थी जिसकी वकालत
मिरे दुश्मन का वो भी तरफ़दार लगता है

सोचती हूँ उन्हें दे दूँ तोहफ़े में मरहम
जिन्हे तीर सा मिरा अश’आर लगता है

त्रिशिका श्रीवास्तव धरा
कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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