पेड़ से स्वप्न वार्तालाप
एक पेड़ मेरे सपने में आया
मुझे देखा तो थोड़ा मुस्कुराया
मुस्कुराकर मुझसे पूछा-और क्या हाल है?
मैंने कहा मत पूछिए-यहां की गर्मी फटेहाल है
आदमी बेहाल है
लगता है गर्मी में जबरदस्त उछाल है
मुझे ऐसा लग रहा है कि आप लोगों की हड़ताल है
सवाल तो तुम्हारा है सौ प्रतिशत खरा
लेकिन धरती को तुम लोगों ने कहां रहने दिया हरा
पेड़ों से विहिन हो रही है धरा
और तुम कहते हो तापमान से तप्त है वसुंधरा
जरा एक बात मुझे समझाओ
हम हैं ही कितने ऊंगली पर गिनकर हमारी संख्या बताओ
हम बचे ही कहां है तुम लोगों के प्रकोप से
मन करता है उड़ा दें तुम सब लोगों को तोप से
काटे जा रहे हो रोज जोरदार लगातार
और पर्यावरण में चाहिए उत्कृष्ट सुधार
तुम लोग आदमी कहलाने के लायक नहीं हो
बस नालायक हो, खलनायक हो, नायक नहीं हो
अनिल कपूर नहीं अमरीश पुरी हो
रामबाण नहीं,बहते हुए नासूर की धुरी हो
अभी सुना है एक और जंजाल
कोयले की चाहत में करोगे हमें और कंगाल
हम नहीं रोज तुम मर रहे हो
लालच में देखो हद से गुज़र रहे हो
दो लाख पेड़ काटने का है प्रावधान
ऐसे ही करोगे पर्यावरण की समस्या का समाधान
अरण्य की भूमि में हम फिर लाखों मारे जायेंगे
तुम लोगों को भी दिन में तारे नज़र आयेंगे
हम हैं तो दवा है
हम हैं तो हवा है
हम हैं तो है फल, फूल और अनाज
वरना भूख से मर जाओगे कल नहीं तो आज
अरे भूख की बात छोड़ो सांस लोगे कैसे
तड़प जाओगे बिन पानी मछली तड़पे है जैसे
करोना में ऑक्सीजन की कमी आई थी
तब तुम्हारी आत्मा तुम्हें प्रकृति की गोद में लायी थी
दिन बित गये भूल गए हो वो बात
नहीं तो इतनी आसानी से हमें काटने को बढ़ते नहीं तुम्हारे हाथ
याद रखना हम पूजा में देते हैं आशिर्वाद
और नाराज़ हुए तो कर देंगे तुम्हें बर्बाद
देंगे ऐसा श्राप
कि आप की सात पुस्तें भी नहीं धो पायेंगी ये पाप
खोट तो आपकी सोच में है आपका ही है दोष
हम तो शुद्ध है, निर्विकार हैं और हैं सौ प्रतिशत निर्दोष
प्रकृति के संतुलन से मत करो खिलवाड़
नहीं तो खुल जायेगा महाप्रलय का किवाड़
रखना अपना ध्यान
कहीं हम ध्यान मग्न हो गये तो तुम्हें भी कर देंगे अंतर्ध्यान
पूर्णतः मौलिक स्वरचित सृजन की अलख से ओतप्रोत
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर,छ.ग.