पेड़ पर अमरबेल
**पेड़ पर अमरबेल**
मत बनाना कोई अमरबेल खेलती है ये स्वार्थी खेल।
वैज्ञानिक नाम है केस्कुटा हरदम स्वारथ में रहे जुटा।
कोई झाड़ी हो या पेड़ सौ फुटा सरबस देता इसे लुटा।
ना फूल पत्ती न फल है तरु का जीवन इसका कल है।
घर में घुसकर करता मेल खुद का घर बन जाता जेल।
ना तो ये भोजन ही बनाए ना जमीन से जल ही पाये।
‘परपोषी’ बढ़ता जैसे रेल यही तो अमरबेल का खेल।
कौन पास है? कौन है फेल?कौन रहा है दुर्दिन झेल ?
किसकी होती बल्ले बल्ले ? निकला है किसका तेल ?
था परोपकारी जीवन मेरा अब छाया घनघोर अंधेरा।
पर एक मुझे संतोष है प्यारे औषधीय गुण इसके न्यारे।
स्वर्ग सा जीवन बन गया हेल मत बनना कोई अमरबेल।