पेड़ और नदी की गश्त
**पेड़ और नदी की गश्त**
पेड़ कहे मैं नहीं किसी का तो क्या उसने कहा सही ?
हम सब पेड़ के पेड़ हमारा मान लो प्यारे यही सही !
CO2 हम सबने छोड़ी तरु ने भोजन हित वही लही।
तरु ने जो ऑक्सीजन छोड़ी हम सबने भी वही गही।
ज्ञात नहीं पेड़ों को शायद वह किसके हैं उनका कौन ?
इसीलिए पेड़ों ने शायद धारण की है आजीवन मौन।
ये अपने फल स्वयं न खाते भूख मिटाने कहीं न जाते।
नदियां भी नींर नहीं पीती पर किसे कहें अपनी बीती?
परहित में दोनों रहे मस्त..अब पेड़ कट रहे नदी पस्त।
भू पर तब तक जीवन है जब तक दोनों कर रहे गस्त।
पेड़ लगालो धरा बचालो मानव जीवन पेटेंट करा लो।
नदियों का जल निर्मल करके स्वयं तरो पूर्वज तरा लो।
**पर्यावरण की ‘लात’**
मास्क लगाकर टहल रहे हो यह भीअच्छी बात है,
पर्यावरण की करो सुरक्षा जन-जन को सौगात है।
हे मानव ! तुम बुद्धिमान हो अच्छा बुरा भी ज्ञात है,
कब सोना कब जगना है कब दिन है कब रात है ?
पैर बहुत उपयोगी होते जो सारा भार हमारा ढ़ोते,
क्रोध से जब विवेक हम खोते बन जाते ये लात हैं।
सभी जीव हैं सांसत में मलिन हो गए फूल पात हैं,
मानव ने जब भी जिद की प्रकृति से खाई मात है।
पाती की गुणता पर्यावरण से, बकरी पाती खात है,
पर्यावरण को समझ सके!वो केवल मानव जात है।
सो पर्यावरण को दूषित करना मानवता पर घात है,
आंख मूंदते रात न होती ना खोले चक्षु प्रभात है।
कर्मों से जन बनें महान चाहे कोई भी धर्म,जात है,
पर्यावरण की करो सुरक्षा जन-जन को सौगात है।