पेट_की_भूख
बस ये पेट की भूख थी जिसने बारहा रुलाया हमें
बैठने को भी जहां कहा न गया वहां भी झुकाया हमें
घिसते रहे खुद को हम जिंदगी की चाक पे
बस जिंदगी ने खुल के हाथ बढ़ाया नहीं हमें
जल रहे थे पेट की इस आग में पेट ही से हम
अब तलक हम से इस आग को बुझाया नहीं गया
बात अपने तलक रहती तो भी ठीक ही था
भूखे अपने बच्चों के सामने कई बार है रुलाया हमें
जन्म पे अपने तो था नहीं कोई भी बस मेरा पुर्दिल
किसी सेठ ने क्यूं नहीं जन्म को घर अपने बुलाया हमें
~ सिद्धार्थ