पेंचकस
26• पेंचकस
सीमाशुल्क निरीक्षक शिव प्रसाद के सिपाही रेलवे स्टेशन पर बहुत परेशान थे। जनरल डब्बा जो गाड़ी में एकदम पीछे था,खचाखच भरा था और कहीं पैर रखने की जगह नहीं थी।उसी में लाल कमीज़ पहने एक संदिग्ध व्यक्ति की उन्हें तलाश थी।किसी तरह चारो तरफ सादे कपड़ों में सिपाहियों ने नज़र दौड़ाया ।कहीं कोई लाल कमीज़ पहने या जिस चेहरे की तलाश थी,वह चेहरा नहीं दिखा।उन्हें पक्का यकीन हो गया कि इस डब्बे में तो वह संदिग्ध बिल्कुल नहीं है और नीचे उतर कर प्लेटफार्म पर सादे कपड़ों में ही खड़े अपने निरीक्षक को उन्होंने यही बात बताई । दरअसल निरीक्षक को उसके आसूचक ने एक दिन पूर्व ही इसी डब्बे से उतरते हुए एक विशेष प्रकार की लाल कमीज़ पहने एक संदिग्ध व्यक्ति को दूर से दिखा कर बताया था कि वह सोने की तस्करी में लिप्त है और इसी उद्देश्य से नेपाल जा रहा है जहाँ से माल लेकर अगले दिन इसी गाड़ी से वापस दिल्ली जाएगा ,ऐसी सूचना मिली है ।शिव प्रसाद के साथ सादे कपड़ों में ही खड़े उनके सिपाही ने अच्छी तरह चेहरा पहचान लिया था ।अभी ट्रेन के जाने में समय था। दिमाग पर कुछ जोर डालने के बाद शिव प्रसाद के मन में यह बात आई कि जरूरी नहीं वह लाल कमीज़ ही पहने, लेकिन जब उसका इसी गाड़ी से आज ही जाना तय है और चेहरा भी पहचाना हुआ है तो क्यों न दूसरे डब्बे चेक कराएं।जरूरत पड़ी तो एक-एक सिपाही हर डब्बा देखेगा।
निरीक्षक ने सिपाहियों को इशारे से किनारे बुला कर समझाया, ” संभव है भीड़ की वज़ह से जनरल डब्बा में न चढ़ पाया हो और बगल के स्लीपर डब्बे में बैठा हो,उसमें भीड़ भी कम है। तुम लोग इसमें चेक करो।सिर्फ चेहरे पर नजर डालो।” निरीक्षक और चार सिपाही सभी सादे कपड़ों में ही थे।सरकारी परिचय पत्र सबकी जेब में रखे थे।साथ में लगे स्लीपर डब्बे में दोनों दरवाजे से दो-दो सिपाही दाखिल हुए । ट्रेन चलने लगी तो शिव प्रसाद भी डब्बे में सवार हो गए।गाड़ी की चाल तेज़ हो गई ।अचानक निरीक्षक की नज़र एक ऐसे यात्री पर पड़ी जो अभी-अभी पास के किसी दूसरे यात्री का अख़बार झपट कर चेहरे के सामने ऐसे रख लिया जैसे पढ़ रहा हो। लेकिन दुर्भाग्य से वह अखबार उल्टा पकड़े था और वह निरीक्षक की पैनी नज़र से छिप नहीं पाया ।यह तो पक्का हो गया कि वह अखबार पढ़ नहीं रहा था, सिर्फ चेहरा छिपाने के लिए ही लिया था ।पढ़ा-लिखा होता तो अखबार उल्टा न पकड़ता और अनपढ़ था तो अखबार पढ़ने का सवाल ही कहाँ था ? शिव प्रसाद ने सिपाहियों से चेहरा तस्दीक़ करने को कहा ।संबंधित सिपाही ने पक्का किया कि यह वही व्यक्ति है जो कल नेपाल गया था, सिर्फ लाल की जगह आज सफेद कमीज़ पहन रखा है । निरीक्षक ने अपना परिचय पत्र दिखा कर यात्रियों के सामने उससे पूछताछ शुरू किया।वह अकेले ही जा रहा था। टिकट भी साधारण।
जब उसने यह बताया कि सामान उसके साथ कोई नहीं है तो सभी को आश्चर्य हुआ ।दिल्ली तक जाना और साथ एक थैला भी नहीं! खैर जब सिपाहियों ने सतही उसके कपड़ों की तलाशी ली तो मात्र एक पेंचकस उसकी ज़ेब से मिला ।पूछने पर बताया कि दिल्ली में पेंचकस का ही उसका कारखाना है और ग्राहकों को दिखाने के लिए नमूने के तौर पर एक अपने पास रखा है ।उसकी बात बिल्कुल विश्वसनीय नहीं लगी और कारखाने का मालिक तो वह कहीं से भी नहीं लगा ।इसलिए निरीक्षक ने पूरे डब्बे में रखे सामानों को बारीकी से देखने का आदेश दिया ।जाँच में उससे थोड़ी ही दूर पर खिड़की के पास की सीट के नीचे एक जंग लगा पुराना मोटर का कबाड़ रखा मिला जिसे किसी ने भी अपना होना नहीं बताया ।उस सीट पर बैठे यात्री का कहना था कि उसके बैठने से पहले ही किसी ने रख दिया था।किसी ने कुछ बताया नहीं ।निरीक्षक ने उस यात्री को डांट भी लगाई कि ऐसे ही कोई विस्फोटक रख कर पूरी ट्रेन उड़ा देगा, तब क्या होगा?सभी यात्री घबरा उठे। सिपाही ने संदिग्ध व्यक्ति से पूछा तो उसने भी कबाड़ के बारे में अनभिज्ञता जाहिर की ।जब उसका पेंचकस लगा कर देखा गया तो कबाड़ में लगा पेंच खुलने लगा और पेंच भी हाल ही में लगाए मालूम हो रहे थे ।निरीक्षक को मामला समझ में आ गया और उसने फिलहाल ट्रेन में मोटर खोलने से मना कर दिया । पेंचकस वाला व्यक्ति अब पूरी तरह शक के घेरे में था।
अगले स्टेशन पर गाड़ी के रुकते ही उस संदिग्ध को कबाड़ के साथ ही नीचे उतारा गया ।उसी स्टेशन पर उसी डब्बे से उतरे दो स्थानीय यात्रियों को भी, जो भीतर बड़ी दिलचस्पी के साथ सारी घटना देख रहे थे, निरीक्षक शिव प्रसाद ने रोक लिया और उन्हें अपना परिचय पत्र दिखाकर कुछ देर सरकारी काम में सहयोग करने का आग्रह किया ।
फिर संदिग्ध व्यक्ति और उन दोनों स्वतंत्र गवाहों को लेकर निरीक्षक सभी सिपाहियों के साथ अपनी ही सरकारी गाड़ी से , जो निर्देशानुसार चालक अगले स्टेशन पर थोड़ी ही देर में लेकर पहुंच गया था, वापस दफ्तर पहुंच गया ।दफ्तर में निष्पक्ष गवाहों के सामने जब कबाड़ मोटर खोला गया तो उसमें छिपा कर रखे 25 विदेशी सोने के बिस्कुट बरामद हुए ।अपने बयान में दोनों गवाहों के सामने अभियुक्त रंगीलाल ने सारा सोना नेपाल से तस्करी द्वारा अवैध रूप से लाना स्वीकार किया जो कि उसे दिल्ली में देना था।दिल्ली से जिस आदमी ने उसे इस काम में लगाया था,उसे पकड़वाने का वादा भी उसने किया । अभियुक्त का बयान, माल की जब्ती, फोटो, तस्कर की गिरफ्तारी और जेल भेजने तक की लंबी प्रक्रिया में काफी समय लगा ।सारे कागजात पर दस्तखत होने के बाद साक्षीगण को ससम्मान विदा किया गया ।दूसरे दिन निरीक्षक शिव प्रसाद की तारीफ में स्थानीय अखबारों ने खूब समाचार छापे।
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—राजेंद्र प्रसाद गुप्ता,मौलिक/स्वरचित,13/07/2021•