पृकति की खोज
हे प्रकृति कैसे बताऊं तू कितनी प्यारी,
हर दिन तेरी लीला न्यारी,
तू कर देती है मन मोहित,
जब सुबह होती प्यारी।
हे प्रकृति कैसे बताऊं तू कितनी प्यारी,
सुबह होती तो गगन में छा जाती लाली मां,
छोड़ घोसला पंछी उड़ जाते,
हर दिन नई राग सुनाते।
हे प्रकृति कैसे बताऊं तू कितनी प्यारी,
कहीं धूप तो कहीं छाव लाती,
हर दिन आशा की नई किरण लाती,
हर दिन तू नया रंग दिखलाती।
हे प्रकृति कैसे बताऊं तू कितनी प्यारी,
कहीं ओढ़ लेती हो धानी चुनर,
तो कहीं सफेद चादर ओढ़ लेती,
रंग भतेरे हर दिन तू दिखलाती।
हे प्रकृति कैसे बताऊं तू कितनी प्यारी,
कभी शीत तो कभी बसंत,
कभी गर्मी तो कभी ठंडी,
हर ऋतू तू दिखलाती।
हे प्रकृति कैसे बताऊं तू कितनी प्यारी,
कहीं चलती तेज हवा सी,
कही रूठ कर बैठ जाती,
अपने रूप अनेक दिखलाती।
हे प्रकृति कैसे बताऊं तू कितनी प्यारी,
कभी देख तुझे मोर नाचता,
तो कभी चिड़िया चहचाती,
जंगल का राजा सिह भी दहाड़ लगाता।
हे प्रकृति कैसे बताऊं तू कितनी प्यारी,
हम सब को तू जीवन देती,
जल और ऊर्जा का तू भंडार देती,
परोपकार की तू शिक्षा देती,
हे प्रकृति तू सबसे प्यारी।