पूर्ण विराम से प्रश्नचिन्ह तक
कभी रिश्तों में मैं पूर्ण विराम सी थी
मुझे पाकर अपूर्णता खो गई थी ।
किन्तु आज उन्ही रिश्तों में
मैं पूर्ण विराम से प्रश्नचिन्ह बन गई ।
जाने कितने प्रश्न व्यूहों में घिर गईं
अब बस चारों तरफ प्रश्न बाण गूँज रहे है,
जो मेरे प्रत्युत्तरों को छिन्न भिन्न कर रहे हैं।
मैं अवाक् आश्चर्य में हूं प्रतिपल,
उद्घाटित सत्य विस्मय बोधक हो रहा ।
अनुत्तरित मस्तिष्क विचारमग्न है,
क्या रिश्ते इतने हल्के हो गये
कि जरा सी हवा चली तो
वर्षों से स्थिर सम्बन्ध
ताश के पत्तों से ढह गये ।
पूर्ण विराम प्रश्नचिन्हों में ढल गये।