पूनम की रात
सखी जरा तुम बताओ मुझे
देखो यूँ ना सताओ मुझे ,
कैसी होती है ये पूनम की रात
सुना है इसमें प्रेमी होते हैं साथ ,
चाँद सामने से सबको देखता है
सच में ऐसा सचमुच में होता है ?
क्या अगन में दहकते जोड़ों को
चाँद चंदन सी शीतलता देता है ?
मैं क्या जानूँ पूनम की रात
क्या जानूँ उस रात की बात ,
ना ही मुझे प्रेम मिला
ना कभी पूनम का चाँद खिला ,
सबके लिए पूनम का चाँद शहद सा मीठा है
पर मेरे लिए तो वो ना मिले अंगूर सा खट्टा है ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 18/09/2020 )