पूजा के बाद
मंदिर में पूजा के बाद,
ऑंचल फैला कर,
किसी ने माॅंगी मनौती,
किसी ने माॅंगा प्रसाद।
मेरे भी हाथ कुछ उठे,
सिर झुका नमन कर,
ऑंख उठाकर देखा मैंने,
कर न सकी कोई फरियाद।
कैसा था वह अनुभव?
कैसा था वह अहसास?
मूरत में तेरी सूरत देखी,
अंतस में दहकी याद।
भूल गई गिले शिकवे,
भूल गई तेरा अपराध,
कोहरा घना हुआ यादों का,
ऑंखो से बहा अवसाद।
सब स्वस्थ रहे जग में,
विपदा न आए मग में,
जलती रहे प्रेम मशाल,
यही दो पूजा के बाद।
— प्रतिभा आर्य
अलवर (राजस्थान)