पूजा का पीर
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तराशे हैं बहुत पत्थर बहुत ईश्वर बनाये हैं।
जिसे कहते हैं पूजा,थाल भी हमने सजाये हैं।
समझ आये न वैसे छंद हमने भी दुहराए हैं।
युगल कर जोड़ अपनी वेदना हमने सुनाये हैं।
बहुत से चिन्ह और संकेत हैं अपने लिए माना।
इन्हीं पाषाण को हमने मसीहा सा तथा जाना।
नियति कल हमारा पीर था, पीर अब भी है।
कल तकदीर थे आंसू यही तकदीर अब भी है।
किसी प्राचीन युग में हो प्रकट वरदान थे देते।
अगर शास्त्रोक्त सच्चे शब्द हमें प्रमाण तो देते।
बहुत से वर्ष,महीने,दिन किये हैं हमने भी विनती।
कहा की त्रुटि विनती में अत: कोई नहीं गिनती।
कभी अनुभूति ईश्वर का, कभी विध्वंस,सृष्टि का।
कभी जब तर्क पर तौला हुआ ये भरम दृष्टि का।
जनम का मृत्यु निश्चित है,मृत्यु का तुम कहा करते।
बड़ा सा धुंध फैलाकर सभी ईश्वर बना करते।
सभी भयभीत है भय से अनिश्चित क्योंकि सारा कल।
हर जीवन में ही शोषण है यही उसका बड़ा सम्बल।
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