पुस्तक समीक्षा
पुस्तक समीक्षा
-कृष्णलता यादव
विनोद सिल्ला द्वारा संपादित समीक्ष्य कृति ‘प्रकृति के शब्द शिल्पी : रूप देवगुणʼ’ में देवगुण की साहित्य को देन के तथ्यपरक विवरण सहित 13 खंड समुद्र, बादल, पक्षी, बरसात, नदी, वृक्ष आदि संकलित हैं। इन कविताओं में आलम्बन, उद्दीपन या किसी अन्य रूप में प्रकृति के खुले दर्शन मिलते हैं। रूप देवगुण की साहित्यिक देन का विवरण पढ़ने से ज्ञात होता है कि लघुकथा, कहानी, कविता, ग़ज़ल, समीक्षा, भूमिका और फ्लैप मैटर लेखन के विपुल भंडार से वे साहित्यनिधि की श्रीवृद्धि कर रहे हैं। नवोदितों का मार्गदर्शन, पुस्तक संपादन, साहित्यिक कार्यक्रमों का आयोजन तथा चर्चा-परिचर्चाओं में सक्रिय भागीदारी उस देन का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है।प्रस्तुत संग्रह की कविताओं में कवि के अनुभवों का गरिमामयी आलेख प्रस्तुत किया गया है। प्रकृति के सान्निध्य में बिताए ये भाव भीगे पल, पाठक को अपना सहयात्री बनाने के लिए और स्वयं निस्सीम होने के लिए, कविता का रूप धारकर कागज पर उतरते चले गये। कवि ने महसूस किया है कि ये प्रकृति है जो व्यक्ति को रोजमर्रा की खचखच से बचाकर उसकी अपने भीतर से पहचान कराती है। कवि पुन: पुन: प्रकृति की गोद में क्यों जाता है? इस प्रश्न का उत्तर उनकी कविताएं देती हैं कि उसे वहां ऐसा कुछ मिलता है जो अन्यत्र दुर्लभ है।समुद्र हो या पहाड़, बादल हो या झरना या ओलों का गिरना कवि ने हर दृश्य को आत्मसात किया है। इसीलिए चट्टान व समुद्र को क्रमश: मां व बेटे के रूपक में बांधकर पेश की गयी रचनाएं सुन्दर बन पड़ी हैं। सूरज और बादल के खेल का आनंद लेकर किसान की खुशी को अपने भीतर जी रहा हूं। ऐसा वही कह सकता है जो घंटों-घंटों प्रकृति की लीला देखता रहा है। बरसात से मानव जीवन पर होने वाले असर को देवगुण ने निकट से देखा है, इसलिए उनके काव्य में बारिश के दौरान की बाल-सुलभ जल-क्रीड़ाएं, झोपड़-पट्टी वालों की असुविधाएं, कृषक वर्ग की चिंताएं, जलचरों की स्वरलहरी और पौधों की मुस्कान का जीवन्त वर्णन है। कवि का मत है कि बारिश का निजी सौन्दर्य होता है जिसका लुत्फ उठाया जाना चाहिए।कवि ने नदियों को महसूसा है और उसे अभिव्यक्त किया है इस प्रकार से कि नदी-नाव से निकटता बनाने के लिए जनमानस लालायित हो सके। नदी का पहाड़ से उतरने का भावपूर्ण दृश्य पाठक को भावुक किये बिना नहीं रहता। नदी-सागर मिलन के माध्यम से स्वयं को मिटाकर, प्यार को अमर रखने का संदेश देती हैं—इस संग्रह की कविताएं। आंधी को बिगड़ी हुई बेटी तथा भिखारिन की संज्ञा देना कवि का अभिनव प्रयोग है। कवि की सोच है कि पानी स्वतंत्रचेता है, इसलिए उसे बोतल में बंद कर महंगे दामों पर बेचने से बाज आना चाहिए। ʻआकाश व अन्य अवयवʼ की कविताओं में आदमी की मेहनत, लगन और खेतों की हरियाली में कवि स्वयं को गुम हुआ-सा पाता है। एक सुदीर्घ रचना में प्रकृति के प्रति मनुष्य के उपेक्षापूर्ण रवैये की मार्मिक झांकी प्रस्तुत की है।कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि रूप देवगुण ने प्रकृति को पहले चिरकाल तक निहारा, उसको स्वयं में उतारा और फिर सहज-सरल भाषा में पाठक तक पहुंचाया। कवि ने जिन अनूठे पलों को प्राकृतिक उपादानों के साथ जिया है, उन्हीं को संकलन के रूप में सौंपा है संपादक विनोद सिल्ला ने। कुछ इस भाव से कि प्रकृति-आधारित इन कविताओं को पढ़कर–प्रकृति से मिलो, उसे पहचानो और स्वयं प्रकृति हो जाओ। प्रकृति के रंगीन मेलों, उन्मुक्त हास्य, जीवन्त संगीत और भावपूर्ण उल्लास से सराबोर इस संकलन को प्रस्तुत करने के अपने उद्यम में संपादक सफल रहे हैं।
पुस्तक : प्रकृति के शब्द शिल्पी : रूप देवगुण
संपादक : विनोद सिल्ला
प्रकाशक : सुकीर्ति प्रकाशन, कैथल
पृष्ठ संख्या : 224
मूल्य : रुपये 500.