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19 Jan 2018 · 2 min read

पुस्तक समीक्षा : ‘सलवटें‘ काव्य-कृति

पुस्तक-सलवटें ‘काव्य-कृति’
कवि-जयपाल सिंह यादव
समीक्षक-मनोज अरोड़ा
पृष्ठ-132
मूल्य – 225/-
प्रकाशक-साहित्य चन्द्रिका प्रकाशन, जयपुर

टकरायेगा नहीं आज उद्धत लहरों से,
कौन ज्वार फिर तुझे पार तक पहुँचायेगा?
अब तक धरती अचल रही पैरों के नीचे,
फूलों की दे ओट सुरभि के घेरे खींचे,
पर पहुँचेगा पथी दूसरे तट पर उस दिन
जब चरणों के नीचे सागर लहरायेगा।
कौन ज्वार फिर तुझे पार तक पहुँचायेगा?
छायावाद की प्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा की उक्त पंक्तियाँ वरिष्ठ कवि श्री जयपाल सिंह यादव की लेखनी पर सटीक बैठती हैं कि समाज में बदलाव या नयापन तो हर कोई चाहता है परन्तु आगे आने को कोई तैयार नहीं होता।
जब तब नायक नहीं बना जाए तब तक केवल संवाद ही रहेगा, अमलीजामा तक पहुँचने का स्वप्न पूरा नहीं हो पाएगा। आज हर कोई भ्रष्टाचार रहित समाज, एकरूपता, भाईचारा, आदर-सत्कार की भावना रखते हैं लेकिन अमल की बात आए या आगे आने की बात आए तो लगभग यही सुनने को मिलता है-‘‘समाज के कार्य समाज पर छोड़ दो’’।
कुछ ऐसे अनसुलझे पहलुओं को गंभीरता से मनन करते हुए वरिष्ठ कवि श्री जयपाल सिंह यादव ने अपनी नवकृति ‘सलवटें’ में कविताओं के माध्यम से समाज को दर्पण दिखाने का प्रयास किया है।
जिसमें कवि देश के लिए प्रेम, बेटियों के लिए सम्मान, मानवता के लिए हृदय में अथाह मान, धर्म के लिए दीन परंतु अधर्म हेतु सतर्क तथा नई सोच हेतु हर क्षण तत्पर हैं।
‘प्रार्थना’ से शुरू होकर ‘समय’ तक कुल उन्चालीस कविताओं के जरिए कवि ने जिस उद्देश्य से पुस्तक की रचना की है, उसका अनुमान कविताओं के भावों से लग जाता है कि कवि समाज सुधार हेतु कितने सजग हैं।
बानगी देखिए-बेटी के लिए
घरेलू हिंसा के घातक घाव
अब गिनाये नहीं जा सकते,
होते बेटियों पे घोर अत्याचार
अब सुनाये नहीं जा सकते।
तो कुछ आगे चलकर देशप्रेम के लिए लिखते है-
आओ रे भाइयो
बात बताऊँ मैं
ग्रंथ गीता ज्ञान की,
दुनिया में दीखे
सबसे ऊँची ख्याति
मेरे भारत महान् की।
कुल मिलाकर पुस्तक में सम्मिलित सभी कविताओं में संदेश हैं जो प्रत्येक इन्सान को कुछ कर गुजरने को प्रेेरित करते हैं।
मनोज अरोड़ा
लेखक, सम्पादक एवं समीक्षक
जयपुर। +91-9928001528

Language: Hindi
Tag: लेख
312 Views
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