Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Jun 2024 · 4 min read

पुस्तक समीक्षा – गीत सागर

शिक्षक/कवि राम रतन यादव की प्रशंसा करने का मेरा कोई इरादा नहीं हैं, फिर भी अपने पहले काव्य संग्रह को बेटी के नाम को ज्योतिमय करते हुए उन्होंने समाज को बड़ा संदेश देने के बाद जैसे अपनी सृजन क्षमता का लोहा मनवाने की ठान बैठे रतन जी अपने दूसरे काव्य संग्रह के साथ अपनी धारदार, जीवंत लेखनी के साथ गीत सागर के साथ उपस्थित हैं।
अपनी मातृदेवी छुटकी देवी और पितृदेव श्रीराम यादव जी के श्री चरणों में समर्पित प्रस्तुत काव्य संग्रह की भूमिका में अध्यक्ष संस्कार भारती बरेली आ. हिमांशु श्रोत्रिय निष्पक्ष जी ने लिखा है कि हिंदी की बहुत सी प्रचलित प्रमुख विधाओं को, जिनमें दोहा, सवैया और घनाक्षरी आदि छंद तथा हिन्दी की विशिष्ट विधा “गीत” पर संकट के मेघ घिरते दृष्टिगोचर हो रहे हों, तब ऐसे संक्रमण काल में गीत संग्रह लेकर पाठकों के समक्ष आना न केवल साहस की बात कही जायेगी, बल्कि यह कवि का गीत विधा के प्रति स्नेह और लगन का परिचायक भी माना जाना चाहिए।
वरिष्ठ गीतकार/साहित्यकार आ. शिव शंकर चतुर्वेदी (बरेली) के अनुसार विविध पुष्पी उपवन गीत सागर में प्रकृति चित्रण, देश प्रेम और सामाजिक परिवेशी परिदृश्य का समावेशी चित्रण का मनोहारी भाव आकृष्ट करता है। सृजन के सभी पहलुओं को संग साथ लेकर काव्य शैली में ढालना एक दुष्कर कार्य होता है, मगर रतन जी ने इस कार्य को संभव कर दिखाया।शास्त्री जी ने उनकी लेखनी ही नहीं उनके श्रम की भी खुले मन से प्रशंसा की है।
गीतों के पुरोधा डा. गोविन्द नारायण शांडिल्य जी ने “मेरी दृष्टि में” रचनाकार की पंक्तियों को उद्धृत करते हुए लिखा है-
“कलम श्रृंगार है अपना,
कलम संसार है अपना।”
रचनाकार के संग्रह के नाम को सार्थक था की पुष्टि स्वयं रचनाकार द्वारा किया जाना माना है। डा.शांडिल्य के अनुसार रतन जी ने अपनी कृति “गीत सागर” के पाठकों को गीतों के अथाह गहराई में डुबोने का सक्षम प्रयास उनके गीतों में परिलक्षित होता है।
रतन जी की रचनाधर्मिता की खूबी ही कहा जाएगा कि आप समस्याओं को उकेरने के साथ समाधान भी देने का सार्थक कार्य भी बखूबी अंजाम देते हैं।
वरिष्ठ कवि साहित्यकार सत्यपाल सिंह “सजग” जी मानते हैं कि रतन जी की प्रतिभा हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अब किसी से छुपी नहीं है, और विभिन्न हृदय स्पर्शी विधाओं में काव्य लेखन एवं प्रस्तुति का हुनर उन पर वीणा वादिनी की कृपा और ईश प्रदत्त है। जिसका इशारा उनकी सरस्वती वंदना की पंक्तियों के सहज, निर्मल भाव से ही महसूस किया जा सकता है –
गुणों का उत्तम प्रसार दो माँ
हमारे अवगुण उबार दो माँ।
कवि अपने सृजन पथ पर सरल-सरस, संप्रेषणीय भाषा का प्रयोग कर अपने काव्य प्रशंसनीय और पठनीय बना दिया है।जो पाठकों को सहजता से आकर्षित करने में सक्षम है।
मध्यम वर्गीय किसान परिवार में महराजगंज, उत्तर प्रदेश के ग्राम छितहीं बुजुर्ग फरेंदा मे जन्में रतन जी ने जीवन के तमाम झंझावातों को धता बताते हुए शिक्षण कार्य के साथ साहित्य साधना की गहराई में उतरकर अपने जूनून को अंजाम तक पहुंचाने के लिए सतत प्रयत्नशील हैं। इतना ही नहीं अपने परिवार, आसपास के शुभचिंतकों, मित्रों, सहयोगियों, मार्गदर्शक/मार्गदर्शक स्वरूप मनीषियों का महत्व और सम्मान उनकी थाती है।जो आज के भौतिक युग में कम ही देखने को मिलती है।
गीतों के साथ बीच बीच में मुक्तकों को स्थान मिला है, जो विशेष आकर्षण का कारक माना जा सकता है विविध विषयों और उद्देश्य परक संग्रह की रचनाओं में प्रेरणा, सीख, सामाजिक, राष्ट्रीय चिंतन, राष्ट्र प्रेम, नशा, पर्यावरण, बचपन,तीज त्योहारों के साथ संदेश और चुंबकीय भाव संग्रह की विशेषता है।
वैसे तो अपने प्रथम संग्रह से ही कवि ने अपने भविष्य की झलक दिखा दिया था, जिसको अपने द्वितीय संग्रह गीत सागर से आगे बढ़ाया है। जिसे कवि के समर्पण का उदाहरण कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा।
विद्या प्रकाशन बाजपुर (उत्तराखंड) से प्रकाशित 116 पृष्ठीय “गीत सागर” संग्रह का मूल्य मात्र 175 रुपये है जिसे संकलन के लिहाज से ठीक ही है। आकर्षक मुख पृष्ठ और पीछे पृष्ठ पर कवि का परिचय संग्रह की आकृष्ट करते हैं।
संक्षेप में अपने द्वितीय संग्रह में कवि ने अपनी साहित्यिक पहचान के स्थाई होने की दिशा में सधे कदमों से विश्वसनीयता का उदाहरण पेश किया हैं। व्यक्तिगत रूप से मुझे संग्रह की सफलता को लेकर कोई संदेह नहीं है। वैसे भी इतने कम समय में अपना दूसरा काव्य संग्रह पाठकों की अदालत में पेश करना इस खुद पर विश्वास और अपनी रचनाओं से पाठकों को सम्मोहित करने का आत्मविश्वास जो रतन जी में झलकता है ।
कवि रामरतन यादव “रत्न” जी को बहुत बधाइयां, शुभकामनाएं।मेरा विश्वास है कि यादव जी का एक और….एक और संग्रहों का सिलसिला अपनी गरिमा के साथ पाठकों के हाथों में शोभायमान होता रहेगा। गीत सागर की सफलता और कवि की सतत सृजन यात्रा जारी रखने के लिए शुभकामनाएं, बधाइयां।

समीक्षक
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उत्तर प्रदेश

54 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
यदि आपका आज
यदि आपका आज
Sonam Puneet Dubey
गीत
गीत "आती है अब उनको बदबू, माॅ बाबा के कमरे से"
अटल मुरादाबादी(ओज व व्यंग्य )
..
..
*प्रणय*
उनका शौक़ हैं मोहब्बत के अल्फ़ाज़ पढ़ना !
उनका शौक़ हैं मोहब्बत के अल्फ़ाज़ पढ़ना !
शेखर सिंह
4386.*पूर्णिका*
4386.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
चीजें खुद से नहीं होती, उन्हें करना पड़ता है,
चीजें खुद से नहीं होती, उन्हें करना पड़ता है,
Sunil Maheshwari
********** आजादी के दोहे ************
********** आजादी के दोहे ************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
बातों की कोई उम्र नहीं होती
बातों की कोई उम्र नहीं होती
Meera Thakur
मसला ये नहीं कि लोग परवाह नहीं करते,
मसला ये नहीं कि लोग परवाह नहीं करते,
पूर्वार्थ
छलावा
छलावा
Sushmita Singh
हे राम तुम्हीं कण कण में हो।
हे राम तुम्हीं कण कण में हो।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
हमने किस्मत से आँखें लड़ाई मगर
हमने किस्मत से आँखें लड़ाई मगर
VINOD CHAUHAN
"जुदा"
Dr. Kishan tandon kranti
इस जीवन का क्या है,
इस जीवन का क्या है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
रमेशराज के 'नव कुंडलिया 'राज' छंद' में 7 बालगीत
रमेशराज के 'नव कुंडलिया 'राज' छंद' में 7 बालगीत
कवि रमेशराज
ग़ज़ल
ग़ज़ल
आर.एस. 'प्रीतम'
जिंदगी का हिसाब
जिंदगी का हिसाब
Surinder blackpen
गांव जीवन का मूल आधार
गांव जीवन का मूल आधार
Vivek Sharma Visha
आंखों की चमक ऐसी, बिजली सी चमकने दो।
आंखों की चमक ऐसी, बिजली सी चमकने दो।
सत्य कुमार प्रेमी
हम मुहब्बत के परस्तार रियाज़ी तो नहीं
हम मुहब्बत के परस्तार रियाज़ी तो नहीं
Nazir Nazar
“एक कोशिश”
“एक कोशिश”
Neeraj kumar Soni
बेडी परतंत्रता की 🙏
बेडी परतंत्रता की 🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
सबको
सबको
Rajesh vyas
जीवन में कोई भी युद्ध अकेले होकर नहीं लड़ा जा सकता। भगवान राम
जीवन में कोई भी युद्ध अकेले होकर नहीं लड़ा जा सकता। भगवान राम
Dr Tabassum Jahan
आवाजें
आवाजें
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
एहसास हो ऐसा
एहसास हो ऐसा
Dr fauzia Naseem shad
Dictatorship in guise of Democracy ?
Dictatorship in guise of Democracy ?
Shyam Sundar Subramanian
*अमर तिरंगा रहे हमारा, भारत की जयकार हो (गीत)*
*अमर तिरंगा रहे हमारा, भारत की जयकार हो (गीत)*
Ravi Prakash
रुख़ से परदा हटाना मजा आ गया।
रुख़ से परदा हटाना मजा आ गया।
पंकज परिंदा
इस सफर में कहो कौन कैसा कहाँ।
इस सफर में कहो कौन कैसा कहाँ।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
Loading...