पुस्तक की पुकार …!
धूल चढ़ी है ,
पुस्तकालय के कोने में पड़ी है ,
ज्ञान की बातें गढ़-गढ़ कर लिखी है,
पढ़ने को कोई आंँखें न झुकी है ।….(१)
मित्र सच्चा जब आएगा ,
खोल पुस्तक को समझ जाएगा ,
मूर्ख इस संसार में है ,
ज्ञान का बीज मेरे अंदर पाएगा ।…..(२)
बोलती होती मुख अगर होते ,
धूल से सनी न पड़ी होती ,
वर्षों से बंद करके रखा है ,
अहमियत शब्दों का न परखा है ।…..(३)
पुरानी पुस्तक हो गई हूँ,
नजरें मुझसे खो गई हैं,
कितने विद्वान पढ़ कर बन गए हैं ,
कागज के टुकड़ों का मूल्य दे रहे हैं ।…(४)
पुस्तक को भी दर्द हो रहा है ,
पढ़ने वाले एहसान समझ ढो़ रहे हैं ,
मित्रवत् व्यवहार कहांँ है अब ,
पद प्रतिष्ठा और धन के लिए संजो रहे हैं ।….(५)
ज्ञान का महत्व खो रहे हैं ,
सम्मान को ठेस दे रहे हैं ,
पुस्तक की पुकार एक छोटी-सी है ,
पुस्तकालय में सिर्फ रखी हुई हूँ ।….(६)
??
रचनाकार
बुध्द प्रकाश ,
मौदहा हमीरपुर ।