सीख (नील पदम् के दोहे)
पुस्तक इतना जानिये, सबसे बड़ी हैं मित्र,
इनकी संगत यों यश बढ़े, जैसे महके इत्र ।
चैन दिवस का उड़ गया, उड़ी रात की नींद,
ऐसे बालक से रखो, आगे बढ़ने की उम्मीद ।
सोया, खाया, करता रहा, अमूल्य समय बर्बाद,
अस बालक सूखे तरु, चाहे जो डालो फिर खाद।
पिता पुत्र को टोंकता, यह कीजो वह नाय,
अपनी गलती के सबक, बेटे को समझाय।
माता-पिता और बड़ों की बातें, समझो आशीर्वाद,
बीते समय के साथ में, बहुत आयेंगे याद ।
समय का मोती पास था, काहे दिया गँवाय,
काहे का रोना-पीटना, अब काहे पछताए ।
सूरज की एक रौशनी, देती अंकुर फोड़,
अपने मतलब की सीख को, लेवो सदा निचोड़ ।
(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”