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14 Mar 2021 · 1 min read

पुरूष दिवस

क्यों ना पुरुष दिवस मनाया जाए
दर्द उसका भी कभी बांटा जाए
क्या चाहता है वो ये जाना जाए
ग़म उसका भी पहचाना जाए।।

बाप बनकर परिवार को पालता जो
पत्नी की गृहस्थी को चलाता जो
अपने लिए कपड़े ना खरीद कर
बच्चों की पढ़ाई के पैसे बचाता है वो।।

प्यार करता है मां से बहुत
लेकिन कभी जता नहीं पाता
दिल में है उसके भी दर्द कई
लेकिन आंसुओं को छुपाकर
सबको वो बता नहीं पाता ।।

हर बार पुरुष की ही गलती हो
ये बात ज़रूरी तो नहीं
हर बार पुरुष ही कसूरवार हो
ये बात भी ज़रूरी तो नहीं
और हर कहानी धोखा वही दे
ये बात भी ज़रूरी तो नहीं।।

गर ग़म हो उसके दिल में कोई
तो वो जाकर किसे बताएगा
दिल में छिपा है जो दर्द वो
अपनों को कैसे सुनाएगा।।

वो भी तो टूट जाता है कभी
भावनाओं में बह जाता है कभी
आखिर इंसान ही तो है वो भी
गलती से कुछ कह जाता है कभी।।

ज़माना बदल गया है अब
भाग दौड़ बहुत हो गई है
दिनभर के काम से थककर
उसको भी थकान बहुत हो गई है।।

कोई उसको भी समझे कभी
कभी उसकी बात भी सुने कोई
साथ चलता है हर वक्त वो
मिले सच्चा साथी तो उसे कोई।।

Language: Hindi
15 Likes · 7 Comments · 581 Views
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