पुरुष हूँ मैं
मैं ब्रह्म का अंश हूं
पुरुष हूँ मैं
माया से घिरा हूँ
वही मेरे
आवरण बना रही है
ताकि मैं
नंगा दिखाई नहीं पड़ूँ
माया ही
मेरा रूप है
माया ही
मेरी योनि है
यही माया ही मेरा
शरीर है
ब्रह्म मेरा केंद्र है
और माया मेरी परिधि
अर्थात्
मैं ही नर हूँ
मैं ही नारी
मैं ही अग्नि हूँ
सोम भी मैं ही हूँ
एक तरफ आक्रामक
दूसरी तरफ
समर्पणकर्ता, ग्रहणकर्ता
सृष्टि युगल है
इसलिए
मैं ही वामा हूँ
मैं ही सौम्या हूँ
शक्ति रूपा
स्त्रैण भी मैं ही हूँ
अग्नि–सोम के योग से निर्मित
मैं अर्धनारीश्वर हूँ
मैं पोषक हूँ
निमित्त हूँ विस्तार का
मैं ही संकल्प हूँ
ब्रह्म तक
पहुँचने की इच्छा भी
मैं ही हूँ
चूंकि ब्रह्म
पुरुष है
एक पुरुष दूसरे पुरुष में
कभी लीन नहीं हो सकता
क्योंकि
पुरुष भाव सदैव
माया भाव के आवरण से
ढ़का होता है
छिपा होता है
अपनी यात्रा
पूर्ण करने के लिए
मुझे सहारा लेना होगा
अपने स्त्रैण भाव का
अंततः
यही स्त्रैण भाव
मुझे मार्ग प्रदान करेगा
मेरी यात्रा का!
–कुंवर सर्वेंद्र विक्रम सिंह✍🏻
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