पुरानी पेंशन
वीर छन्द
सिर्फ पुरानी पेंशन लेंगे, भीख नहीं ये है अधिकार।
कामगार की स्वर्णिम पूँजी, और बुढ़ापे का आधार।
नहीं नई पेंशन को लेंगे, इसमें है छलने की बात।
बेदर्दी से हड़प लिए हैं, चौथेपन की जो सौगात।।
जब तक हमें पुरानी पेंशन, देगी नहीं सुने सरकार।
आग बबूला हो सड़कों पर, निकल पड़ेंगे भर हुंकार।
छीन बुढ़ापे की लाठी को, न्याय नहीं की है सरकार।
अधिनायक सब मेवा काटें, बिलख रहा अगणित परिवार।
शिक्षक और कर्मचारी सब, कमर कसें होवें तैयार।
बिना क्रांति के नहीं मिलेगा, छीना हुआ सकल अधिकार।
आगामी चुनाव से पहले, निकल पड़ें करके ऐलान।
माननीय की भाँति सभी को, मिले बुढ़ापे में सम्मान।।
सर से पानी गुजर गया है, मिलकर करें आर या पार।
नहीं पुरानी पेंशन दें तो, उखाड़ फेंकें अबकी बार।
वृद्धापन के बहते आँसू, रो-रो करते यही पुकार।
कामगार औ शिक्षक जागें, तब जागेगी ये सरकार ।।
सुप्त चेतना धूल फाँकती, खो देती अपना अधिकार।
दिग्दिगंत में आज हर कहीं, सजग चेतना की दरकार।
सिर्फ पुरानी पेंशन के हित, लड़ें कह रहा ये मनमीत।
आगे आएँ बिगुल बजाएँ, तभी समर में होगी जीत।।
डॉ०मनमीत