पुरानी किताब
फटी पुरानी, बिखरे पन्ने पुरानी एक किताब
टेबल पे धुल खाँती हुई…….रो रही थी…….
अचानक से बोल उठी….
क्या में अब तुम पे बोझ बन गयी हुं,
याद करो मैंने तुम्हे कितना ज्ञान दिया है
कितनी बाते सिखाई हैं……..
और अब तुम मुझे रद्दी में बेंच रही हो|
मैंने कहा नहीं दोस्त, तुम्हारी जगह अब
नयी किताब ने ले ली हैं……
इंसान को नया कुछ सिखने कि चाहत
तो हमेशा रहती हैं……
एक पिढी से, दुसरी पिढी, दुसरी से तिसरी
इंसान आगे बढ़ता जाता है…….
अपने ज्ञान का पिटारा बस भरते ही चला जाता हैं……….
तुम तो एक किताब हो फिर भी तूम्हें इतना बुरा लग रहा है,
सोचो जरा, तुम्हारी ये जो हालत आज हैं,
उससे इंसान भी नहीं बचे…..
इंसान भी नहीं बचे……..