पुन: विभूषित हो धरती माँ ।
सभ्यता के शिखर पर पहुंचे हुए
हे मनुज पुत्रों तुम जरा देखो ठहर,
तेरी पालना व शीर्ष तक ले जाने में
और सुख समृद्धि के उपहार में,
तेरी मां के कितने गहने बिक चुके है ?
उसने तो सर्वस्व था तुम पर लुटाया
फिर ये जाने क्यों तुझे न याद आया ?
आज मां अति मलिन सी सम्मुख खड़ी
क्यों देखकर भी ग्लानि न तुझमें भरी ?
हां ये धरती मां वही है, गोद में जिसकी तुम खेले ।
इसके सब संसाधनों से जिंदगी में सारे मेले ।
वेदना ये मां की गहरी अब तो कुछ संज्ञान लो ।
कर धरा को फिर विभूषित मां से आशीर्वाद लो ।
लौटाओं इसकी हरीतिमा तरु, विटप, पल्लव
स्वच्छ संचित नीर के सब स्रोत दे दो ।
देखों इसकी प्राणवायु कम न हो अब
अति धीरता व बुद्धि से इस को सहेजो |
शोर कुछ तो कम करो संसाधनों का
ताकि फिर से मां की लोरी सुन सको ।
हो कर मां फिर पुनर्भूषित ढ़ेरों ही आशीष देगी।
तेरी नवागत पीढ़ियों को नवल सब उपहार देगी।