पुनः जोड़िए जीवन प्रकृति से
पुनः जोड़िए जीवन
प्रकृति के तरीके से
हमारा अस्तित्व बचेगा सिर्फ
उससे जुड़ने के सलीके से ।
हवा, पानी, मिट्टी
धूप, धूल, बरसात
मत लगाइए दिमाग
जो मिलता है सामने
सहज करिए स्वीकार ।
शरीर जीवंत दिया है
प्रकृति ने
अपने परिचित तत्त्वों से
जल्द तालमेल
बैठा लेता है वे ।
अगर करेंगे उसमें घालमेल
उलझ जाएगा वहां शरीर
अनमने से उसे लेकर
शुरू हो जाएगा
बुरी तकदीर ।
घिर चुके हैं हम
सैकड़ों बिमारी से
अलग अलग ईलाज
करने में लगे हैं हम
जो संभव नहीं बेचैन हैं सब ।
समझना है सिर्फ एक बात
सबका है सिर्फ एक ईलाज
बस करने की है एक शुरुआत ।
आहार-विचार
मन-शरीर
सबके जुड़े
आपस में तार
भाव-अभाव
हाव-भाव
फिर उसपर
प्रकृति का कनेक्शन
जिससे जुड़ा है सबका तार ।
मुंह धोने से लेकर
रात सोने तक
सुबह नाश्ते में क्या होगा
रात खाने तक
दिन शुरू करने से लेकर
रात खत्म करने तक ।
हर अपनी दैनिक क्रिया को
प्रकृत संग प्राकृत बना लें
कर जल्द ऐसा सब
जीवन सुगम राह बना लें ।।