पुछ रहा भीतर का अंतर्द्वंद
पुछ रहा भीतर का अंतर्द्वंद
क्या उस पलाश में नहीं जो भर देता है बीहड़ में रंग
या फिर
बारिश के उस तेज बहाव में बहते अपनी जड़ो को छोड़
जैसे लड़ रहा आखिरीबार
सांसों की खातिर तुम्हारा अंतिम क्षण
जीवन
आखिर कहाँ नहीं हो तुम!
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©️_दामिनी नारायण सिंह