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1 Aug 2024 · 1 min read

पुछ रहा भीतर का अंतर्द्वंद

पुछ रहा भीतर का अंतर्द्वंद

क्या उस पलाश में नहीं जो भर देता है बीहड़ में रंग
या फिर
बारिश के उस तेज बहाव में बहते अपनी जड़ो को छोड़
जैसे लड़ रहा आखिरीबार
सांसों की खातिर तुम्हारा अंतिम क्षण

जीवन
आखिर कहाँ नहीं हो तुम!

✨️☀️🌾🌧🌳
©️_दामिनी नारायण सिंह

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