पुकार सुन लो
कटते हुए दरख्तों की तुम गुहार सुन लो
रुंधे गले से सिसकी भारी पुकार सुन लो
परिंदों के घरोंदों को डाल न मिल पाएगी
मुसाफिर को धूप में छांव न मिल पाएगी
दरख़्त न रहेंगे तो धरती प्यासी रह जायेगी
कंक्रीट के शहर में एक बूंद भी न मिल पाएगी
पानी के बिना ये धरती बंजर बन जाएगी
आसमां को निहारते दुनिया उजड़ जाएगी
इन बेजुबानों की आवाज़ चीख पुकार कर रही
बिना हवा पानी के पशु पक्षी और जनता मर रही
Language: Hindi
Tag: कविता