पीर हिन्दी की….
हिन्दी मुक्तिका
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मित्र उर्दू सुपोषित हरित हो गयी,
कामना स्वार्थपरता फलित हो गयी,
आज हिन्दी दिवस आ गया साथियों,
मातृभाषा पुनः अब व्यथित हो गयी.
आज इंग्लिश में अवसर व है नौकरी,
हाय हिन्दी उसी से रहित हो गयी.
राष्ट्रभाषा न इसको बना हम सके,
पंगु बनकर व्यवस्था थकित हो गयी.
खेलते खेल है गोष्ठियों में सभी,
मेम इंग्लिश विदेशी ललित हो गयी.
आंग्लभाषा का ऐसे नशा चढ़ रहा,
हर जुबां पर ये मिश्री घुलित हो गयी.
व्हाट्सएप फेसबुक पे जो आश्रय मिला,
पीर हिन्दी की जग को विदित हो गयी.
आओ ऐसा करें इसकी गरिमा बढ़े,
छंदमय रूप ले ये रचित हो गयी.
आज ‘अम्बर’ हुआ फेसबुक आपका,
देख हिन्दी मुखर पल्लवित हो गयी.
इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’