राष्ट्र की पीड़ा
दुःख-दरद के संग में, दिखी भूख की पीर|
कैसे बोले राष्ट्र का, पीड़ित नहीं शरीर||
देख हाल निज राष्ट्र का, रोता हृदय बृजेश|
दीन हीन लाचार को, क्यों देते हो क्लेेश||
वह सहते संताप जो दें निर्धन को शूल|
राष्ट्र-अमन सद्ज्ञान है सब धर्मों का मूल||
बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषिआलोक” कृतियों के प्रणेता